आनंदस्वरूप के ज्ञान-माधुर्य को जगाने का उत्सव
होली का त्यौहार छोटेपन-बपन की ग्रंथियों को हटाकर छोटे और बडे की गहराई में जो सत्-चित्आनंदस्वरूप है, उसके उल्लास को, ज्ञान को, माधुर्य को जगाने का उत्सव है । फाल्गुन की पूर्णिमा परमात्मा में विश्रांतिवाले प्रह्लाद की विजय का दिवस है । जिसे देह और भोग ही सत्य दिखें उसका नाम है हिरण्यकशिपु तथा देह व भोग मिथ्या हैं, उनको जाननेवाला परमात्मा सत्य है, यह जिसको दिखे उसका नाम है प्रह्लाद ! हिरण्यकशिपु के प्रयत्नों के बावजूद भी जब प्रह्लाद भक्ति से न डिगा, तब उसने प्रह्लाद को मारने का काम अपनी बहन होलिका को सौंपा । होलिका को आग में न जलने का वरदान मिला था । होलिका की गोद में प्रह्लाद को बिठा दिया गया और आग लगा दी गयी । परंतु होलिका जल गयी और प्रह्लाद जीवित रह गये क्योंकि प्रह्लाद सत्य की शरण थे, ईश्वर की शरण थे ।
महापुण्यदायी होली की रात्रि
होली की रात्रि चार पुण्यप्रद महारात्रियों में आती है । होली की रात का जागरण, जप, ध्यान, महापुरुषों का सान्निध्य पुण्य का ढेर-ढेर पैदा करता है ।
कैसे पायें स्वास्थ्य-लाभ ?
* होली की रात को बिना तेल-घी का भोजन करना चाहिए । सूखे अन्न से आपके कफ का अवशोषण होगा, पाचन-तंत्र ठीक बना रहेगा ।
* इन दिनों में कीर्तन-यात्रा निकालना विशेष हितकारी है ।
* नीम सेवन तथा नमक बिना का भोजन करें ।
* इस मौसम में गन्ना चूसना, करेला खाना स्वास्थ्यप्रद है । प्राणायाम, आसन करने चाहिए ।
* कूद-फाँद करना और नया धान्य, सृष्टिकर्ता को अपर्ण करके बाटँत हएु खाना-खिलाना चाहिए ।
* पूनम के दिन पंचगव्य का प्रसाद लेना चाहिए । इससे हड्डी तक के रोगों का शमन होता है । पलाश के फूलों से होली खेलें होली के बाद सूर्य की किरणें धरती पर सीधी पडेंगी तो सप्तधातुएँ थोडी कम्पायमान होंगी । शरीर में रोगप्रतिकारक शक्ति मजबूत रहे इसलिए पलाश के पुष्पों से होली खेलने की व्यवस्था थी । दुर्भाग्यवश जब रासायनिक रंगों से होली खेलते हैं तो उनमें हानिकारक पदार्थ पडते हैं जो सप्तरंगों को उत्तेजित करते हैं । पलाश के रंग से होली खेलते हैं तो क्षमा व गम्भीरता का सद्गुण बढेगा, स्थिरता बढेगी, मजबूती और संजीदगी का स्वभाव बढेगा । हृदय और मस्तिष्क की दुर्बलता दूर होगी । उदासी और उन्माद दूर होगा । अगर रासायनिक रंगों से होली खेलते हैं तो इसके विपरीत नुकसान होने की सम्भावना है ।
होली का पावन संदेश होली का संदेश है कि छोटापन-बडापन वास्तविक नहीं है, वास्तविक तुम्हारा चैतन्यपन है । ‘मैं कम पढा हूँ, धन कम है, मेरा कोई नहीं है...नहीं ! सारा जगत जिसका संकल्प है वह परमात्मा तेरा आत्मा होकर बैठा है । तू अपने को दीन-हीन मत मान, तुच्छ संकीर्णताओं को छोड । यही होलिकोत्सव का उद्देश्य है ।