अकल बडी कि भैंस ?
एक बार अकबर और बीरबल नदी किनारे टहल रहे थे । रास्ते में तुलसी का पौधा देखकर बीरबल ने उसे प्रणाम किया और एक पत्ता तोडकर मुँह में डाल लिया । अकबर ने पूछा : ‘‘बीरबल ! इस पौधे को तुमने प्रणाम क्यों किया और इसका पत्ता क्यों खाया ? बीरबल : ‘‘इस पौधे को हम हिन्दू लोग माता के समान मानते हैं और इसका आदर-पूजन करते हैं । जिसे मैंने अपने मुँह में डाला है, वह पत्ता नहीं बल्कि माँ का दूध है । अकबर को गुस्सा आया । उसने तुलसी के पौधे को हाथ से मसल दिया और बोला : ‘‘तुम सब हिन्दू लोग इतने बेवकूफ हो कि पेडों की, पत्थरों की पूजा करते हो । बीरबल मन-ही-मन अकबर को सबक सिखाने का उपाय सोचने लगा । रास्ता चलते-चलते उन्हें आगे एक ऐसा पेड (कैकटस) मिला, जिसका स्पर्श होते ही सारे शरीर में खुजली होने लगती है । बीरबल ने तुरंत उस पेड को प्रणाम किया । अकबर ने पूछा : ‘‘यह क्या कर रहे हो ? बीरबल बोला : ‘‘जहाँपनाह ! यह पेड हम हिन्दुओं का पिता है, इसीलिए मैंने इसे प्रणाम किया है । अकबर ने अपने दोनों हाथों तथा पैरों से उस पेड को कुचलना शुरू कर दिया । उसका स्पर्श होते ही अकबर के सारे शरीर में बुरी तरह खुजली होने लगी । अकबर पूछने लगा : ‘‘बीरबल... बीरबल ! यह क्या ? मैं खुजली के मारे मरा जा रहा हूँ । ‘‘सरकार ! आपने पहले मेरी माता का अपमान किया था । मैं तो आपसे कुछ नहीं बोला लेकिन अब पिताजी आप से बदला ले रहे हैं । हमारी माताएँ दयालु होती हैं । बच्चा गलती करे तो वे उसे क्षमा कर देती हैं परंतु पिता अनुशासनशील होते हैं । वे बच्चे की गलती पर तुरंत उसे सजा देकर सुधार देते हैं । अकबर ने उसी दिन से हिन्दुओं के किसी भी देवी-देवता का अपमान न करने की प्रतिज्ञा कर ली ।
सीख : बीरबल ने जैसे अपने बुद्धिबल, विवेक से अधर्म का करारा जवाब दिया, ऐसे ही अपने जीवन में अन्याय, अधर्म का सामना करने का मनोबल, बुद्धिबल होना चाहिए ।